Rajput Pride Women

छवि राजावत : नए जमाने की सरपंच


MBA डिग्रीधारी व दिल्ली के कार्पोरेट जगत में काम कर चुकी छवि राजावत आजकल राजस्थान के टोंक जिले के सोढा गांव की सरपंच है , इनके बारे में ज्यादा जानने के लिए चित्र पर क्लिक करे , यह चित्र इंडिया टूडे पत्रिका में छपे एक लेख का है |



About Chavvi Rajawat

Chavvi Rajawat was working as a senior management executive in Bharti-Tele Ventures before she decided to contest for the post of Sarpanch in the village where she was born.

Rajawat was honoured by former President of India APJ Abdul Kalam at the Technology Day function at New Delhi.

The Soda Village is now improved a lot . From being just another village in Rajasthan, Soda has now found a place in the global map. Chhavi Rajawat has stressed on concentrating on the most fundamental issues like
Water conservation
Education
Health and sanitation
Reforestation
Electricity and roads first.


To make the whole process of development transparent, she ensures that all the information regarding the status of the projects are shared online, which is one totally unique endeavor.






Chhavi Rajawat -Sarpanch (Head of a Village) of Soda, a village sixty kilometers from Jaipur, Rajasthan.


Grand daughter of Brigadier Raghubir Singh , was former Sarpanch(Mayor) of the Same village (Soda).


Chavvi Rajawat , is the Youngest Sarpanch , and very skilled plus highly educated .
Education Details of Chavvi Rajawat.


Schooling from - Rishi Valley School (Andhra Pradesh), And Mayo College Girls’ School (Ajmer).


Graduate From - Lady Shri Ram College (University of Delhi) and a Management graduate from Pune.




असिस्टेंट कमान्डेंट राज्यश्री राठौड़ :राजस्थान की पहली महिला पायलट


नागौर जिले के मकराना पंचायत समिति के इटावा गांव के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता,लेखक औरजोगसंजोग.कॉम के मोडरेटर ठाकुर मगसिंह जी राठौड़ की २२ वर्षीय पुत्री राज्यश्री राठौड़ को राजस्थान की पहली महिला पायलट बनने का गौरव हासिल हुआ है | एक मध्यमवर्गीय परिवार से सम्बन्ध रखने व गच्छीपुरा जैसे छोटे गांव से शिक्षा की शुरुआत करने वाली राज्यश्री राठौड़ आजकल एजिमाला स्थित इंडियन नेवल एकेडमी में असिस्टेंट कमान्डेंट पायलट डिफेन्स का प्रशिक्षण ले रही है |
अमेरिका स्थित फ़्लाइंग स्कूल एयर-डी से फलाइंग का प्रशिक्षण लेने के बाद राज्यश्री ने देश की सेवा करने के जज्बे के चलते प्राइवेट एयरलाइन्स में ऊँची आमदनी वाली नौकरी करने के बजाय इंडियन कोस्ट गार्ड चुना |


अपनी मेहनत और लगन से अपने बचपन के सपनों की ऊँची हसरत पूरी कर कामयाबी की ऊँचाइयाँ छूने वाली राज्यश्री राठौड़ को हार्दिक बधाईयाँ और शुभकामनाएँ | सुश्री राज्यश्री राठौड़ उन राजपूत लड़कियों की भी प्रेरणाश्रोत बनेगी जो अपनी जिन्दगी में कुछ खास करके ऊँचाइयाँ छूना चाहती है | राज्यश्री ने यह भी साबित कर दिखाया कि यदि प्रतिभा हो तो शिक्षा गांव में लें या शहर में कोई फर्क नहीं पड़ता |








बीच युद्ध से लौटे राजा को रानी की फटकार





बात जोधपुर की चल रही है तो यहाँ के अनेक राजाओं में एक और यशस्वी राजा जसवंत सिंह जी और उनकी हाड़ी रानी जसवंत दे की भी चर्चा करली जाए | महाराज जसवन्त सिंह जी ने दिल्ली की और से बादशाह शाहजहाँ और औरंगजेब की और से कई सफल सैनिक अभियानों का नेतृत्व किया था तथा जब तक वे जीवित रहे तब तक औरंगजेब को कभी हिन्दू धर्म विरोधी कार्य नही करने दिया चाहे वह मन्दिर तोड़ना हो या हिन्दुओं पर जजिया कर लगना हो , जसवंत सिंह जी के जीते जी औरंगजेब इन कार्यों में कभी सफल नही हो सका | २८ नवम्बर १६७८ को काबुल में जसवंत सिंह के निधन का समाचार जब औरंगजेब ने सुना तब उसने कहा " आज धर्म विरोध का द्वार टूट गया है " |
ये वही जसवंत सिंह थे जिन्होंने एक वीर व निडर बालक द्वारा जोधपुर सेना के ऊँटों की व उन्हें चराने वालों की गर्दन काटने पर सजा के बदले उस वीर बालक की स्पष्टवादिता,वीरता और निडरता देख उसे सम्मान के साथ अपना अंगरक्षक बनाया और बाद में अपना सेनापति भी | यह वीर बालक कोई और नही इतिहास में वीरता के साथ स्वामिभक्ति के रूप में प्रसिद्ध वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ था |
महाराज जसवंत सिंह जिस तरह से वीर पुरूष थे ठीक उसी तरह उनकी हाड़ी रानी जो बूंदी के शासक शत्रुशाल हाड़ा की पुत्री थी भी अपनी आन-बाण की पक्की थी | १६५७ ई. में शाहजहाँ के बीमार पड़ने पर उसके पुत्रों ने दिल्ली की बादशाहत के लिए विद्रोह कर दिया अतः उनमे एक पुत्र औरंगजेब का विद्रोह दबाने हेतु शाजहाँ ने जसवंत सिंह को मुग़ल सेनापति कासिम खां सहित भेजा | उज्जेन से १५ मील दूर धनपत के मैदान में भयंकर युद्ध हुआ लेकिन धूर्त और कूटनीति में माहिर औरंगजेब की कूटनीति के चलते मुग़ल सेना के सेनापति कासिम खां सहित १५ अन्य मुग़ल अमीर भी औरंगजेब से मिल गए | अतः राजपूत सरदारों ने शाही सेना के मुस्लिम अफसरों के औरंगजेब से मिलने व मराठा सैनिको के भी भाग जाने के मध्य नजर युद्ध की भयंकरता व परिस्थितियों को देखकर ज्यादा घायल हो चुके महाराज जसवंत सिंह जी को न चाहते हुए भी जबरजस्ती घोडे पर बिठा ६०० राजपूत सैनिकों के साथ जोधपुर रवाना कर दिया और उनके स्थान पर रतलाम नरेश रतन सिंह को अपना नायक नियुक्त कर औरंगजेब के साथ युद्ध कर सभी ने वीर गति प्राप्त की |इस युद्ध में औरग्जेब की विजय हुयी |
महाराजा जसवंत सिंह जी के जोधपुर पहुँचने की ख़बर जब किलेदारों ने महारानी जसवंत दे को दे महाराज के स्वागत की तैयारियों का अनुरोध किया लेकिन महारानी ने किलेदारों को किले के दरवाजे बंद करने के आदेश दे जसवंत सिंह को कहला भेजा कि युद्ध से हारकर जीवित आए राजा के लिए किले में कोई जगह नही होती साथ अपनी सास राजमाता से कहा कि आपके पुत्र ने यदि युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया होता तो मुझे गर्व होता और में अपने आप को धन्य समझती | लेकिन आपके पुत्र ने तो पुरे राठौड़ वंश के साथ-साथ मेरे हाड़ा वंश को भी कलंकित कर दिया | आख़िर महाराजा द्वारा रानी को विश्वास दिलाने के बाद कि मै युद्ध से कायर की तरह भाग कर नही आया बल्कि मै तो सेन्य-संसाधन जुटाने आया हूँ तब रानी ने किले के दरवाजे खुलवाये | लेकिन तब भी रानी ने महाराजा को चाँदी के बर्तनों की बजाय लकड़ी के बर्तनों में खाना परोसा और महाराजा द्वारा कारण पूछने पर बताया कि कही बर्तनों के टकराने की आवाज को आप तलवारों की खनखनाहट समझ डर न जाए इसलिए आपको लकड़ी के बर्तनों में खाना परोसा गया है | रानी के आन-बान युक्त व्यंग्य बाण रूपी शब्द सुनकर महाराज को अपनी रानी पर बड़ा गर्व हुआ |






चित्र गूगल से साभार

उस राज कन्या ने मेवाड़ का भाग्य बदल दिया


तुर्क हमलावर अलाउद्दीन खिलजी ने जैसे तैसे चितौड़ जीत कर अपने चाटुकार मालदेव को मेवाड़ का सूबेदार बना दिया था | युध्ध में रावल रतन सिंह सहित चितौड़ के वीरो ने केसरिया बाना पहन कर आत्माहुति दी | खिलजी की मौत के बाद मुहम्मद तुगलक दिल्ली का सुलतान बना तो मालदेव ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली | सीसोदा की जागीर को छोड़कर लगभग सारा मेवाड़ तुर्कों के कब्जे में था और सिसोदा के राणा हम्मीर सिंह को इसी का दुःख था |

बापा रावल की सैंतीस्वी पीढी के रावल करण सिंह ने जब अपने बड़े बेटे क्षेम सिंह को मेवाड़ की बागडोर सौंपी तो छोटे बेटे राहप को राणा की पदवी दे सिसोदा की बड़ी जागीर दे दी | केलवाडा इस ठीकाने की राजधानी था | रावल क्षेम सिंह के वंश में आगे चल कर रावल रतन सिंह हुए | राणा राह्प के वंशज अरि सिंह इनके समकालीन थे और खिलजी से युध करते हुए राणा अरि सिंह ने भी रावल रतन सिंह के साथ वीरगति पायी | उन्ही का युवा पुत्र हम्मीर इस समय केलवाडा में मेवाड़ को विदेशी दासता से मुक्त करने की योजना बना रहा था |

पहले तो हम्मीर ने मालदेव का स्वाभिमान जगाने की कोशिश की ,पर जिसके खून में ही गुलामी आ गयी हो वह दासता में ही अपना गौरव समझता है | इस लिए उसने उलटे हम्मीर को ही तुर्कों की शरण में आने को क़हा | हमीर ने मालदेव और तुर्कों पर छापेमार कर हमले करने शुरू कर दिए | मालदेव ने इस से बचने के लिए चाल सोची और हम्मीर को अपनी लड़की की शादी के प्रस्ताव का नारियल भिजवाया |
हम्मीर ने काफी सोचविचार के बाद उस विवाह प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया | और तय समय पर अपने गुप्तचरों और सैनिको के साथ चितौड़ दुर्ग पहुँच गए | वंहा जाकर दुर्ग का निरिक्षण किया | विवाह के बाद उनका साक्षात्कार राजकुमारी सोनगिरी से हुआ तो राजकुमारी ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया " महाराज मै आपके शत्रु की कन्या हूँ इसलिए मै आपके योग्य नहीं हूँ मेरे पिता तुर्कों के साथ है लेकिन मै आपका साथ देकर मातृभूमि के लिए संघर्ष करूंगी | "
हम्मीर उसकी देशभक्ती से प्रभावित हुए वे बोले " देवी अब आप सिसोदा की रानी है | अब आपका लक्ष्य भी हमारा लक्ष्य है | हम मिल कर मेवाड़ की स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ेंगे |"

सोनगिरी ने क़हा महाराज अप देहेज में दीवान मौजा राम मोहता को मांग लीजिये वे बहुत नीतिग्य और देश भक्त है |
मालदेव ने सोचा की मोहता अपने लिए गुप्तचरी करेंगे यह समझ कर उनहोने सहर्ष हम्मीर की बात मान दीवान मोहता को उनके साथ कर दिया | हमीर की विदाई रानी और मोहता के साथ कर दी गयी | दुर्ग के कपाट बंद कर किलेदार को आदेश दिया गया की आज से हम्मीर या उनका कोइ सैनिक इस किले में ना आ पाये |
थोड़ी दूर जाने पर दीवान मोहता ने हम्मीर से क़हा की महाराज मालदेव आपको असावधान करके केलवाड पर हमला करने की फिराक में है | लेकीन अभी तुगलक ने उसे सेना सहित सिंगरौली बुलाया है | वह कूच करने वाला है | इस लिए चितौड़ विजय का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा |

मोहता की बात सुन कर हम्मीर ने पास के ही जंगल में डेरा डाल दिया और मालदेव के सिंगरौली जाने का इन्तजार करने लगे | जैसे हे उन्हें अपने गुप्तचरों के द्वारा मालदेव के बाह जाने का सन्देश मिला अपने सैनिको को इकठ्ठा करके वापस किले की तरफ रवाना हो गए | राणा हम्मीर भी स्त्री वेष में हो लिए और मोहता मोजा राम को आगे कर दिया | खुद पालकी में बैठ गए | रात्री का समय हो गया था किले के दरवाजे पर जाकर आवाज लगाई "द्वारा खोलो मै दीवान मोजा राम मोहता हूँ , राजकुमारी पीहर आयी है | किले दार ने झांक कर देखा तो उन्हें मोजा राम पालकी के साथ दिखाई दिए तो उन्हें कोइ ख़तरा ना जान और मोजा राम तो अपने आदमी है तथा आदेश केवल राणा हम्मीर के लिए ही था सो किले दार ने ज्यादा बिचार किये बिना द्वार खोल दिए | अन्दर घुसते ही राणा हम्मीर और सैनिको ने द्वार रक्षक सैनिको का काम तमाम कर दिया | अगले द्वार पर भी यही प्रक्रिया दोहराई गयी | किले में मालदेव के थोड़े से ही सैनिक थे इस लिए बात ही बात में किले पर राणा हमीर का कब्जा हो गया | सुबह की पहली किरन के साथ ही केसरिया ध्वज लहरा दिया गया |

माल देव को पता लगा तो वह उलटे पैर चितौड़ की ओर दोड़ा पर हम्मीर ने उसे रास्ते में ही दबोच लिया | उसके सैनिक भी हम्मीर के साथ हो लिए | अब बिना समय गवाए हम्मीर ने सिंगरौली में बैठे तुगलक पर हमला बोल दिया उसके सैनिक भाग गए और तुगलक पकड़ा गया | तीन महीने तक कारागृह में रहने के बाद मेवाड़ के साथ साथ अजमेर व नागौर के इलाके पचास लाख रूपये और सो हाथी देकर अपने प्राण बचाए |
राणा हम्मीर अब पूरे मेवाड़ के महाराणा हो गए | यहीं से मेवाड़ के शिशोदिया वंश का काल खंड शुरू हुआ | राष्ट्र भक्त क्षत्राणी महारानी सोनगिरी ने राष्ट्र - हित में अपने पिता को त्याग कर मेवाड़ को पुन भारत का मुकुट बना दिया |

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